एमजीएम अस्पताल से स्क्रैप की आड़ में जंबो ऑक्सीजन सिलेंडर भी ले जा रहा था संवेदक

 

अधीक्षक को नहीं थी सूचना, हस्तक्षेप के बाद वापस उतारे 8 सिलेंडर

जमशेदपुर : एमजीएम अस्पताल में निकले कंडम सामानों का टेंडर प्रेमलता इंटरप्राइजेज नामक ठेका कंपनी को मिला है। जिसके तहत शुक्रवार ठेका कंपनी के मालिक अमित तिवारी द्वारा इमरजेंसी विभाग में बने कमरे से कंडम सामानों को मजदूरों से उठवाकर दो 407 ट्रक में लोड करवाया जा रहा था। यह सारा काम दवा स्टोर के क्लर्क दीपक कुमार की देखरेख में चल रहा था। इस दौरान कमरे में रखे 8 जंबो ऑक्सीजन सिलेंडर को भी कंडम घोषित कर 407 ट्रक में लोड करवा दिया गया। जिसकी सूचना अधीक्षक डॉ रविंद्र कुमार को भी नहीं थी। वहीं सूचना मिलने पर अधीक्षक ने सभी सिलेंडरों को इमरजेंसी में रखने का आदेश दिया। जिसके बाद मजदूरों द्वारा वापस सभी सिलेंडरों को कमरे में रखा गया। इस संबंध में जब अस्पताल के कर्मचारी दीपक कुमार से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सभी सिलेंडर खराब है और यह सभी जंबो ऑक्सीजन सिलेंडर अस्पताल में बहुत पहले सप्लाई की गई थी। वहीं जब उनसे सिलेंडरों को कंडम घोषित करने के लिए एनओसी मिलने की बात पूछी गई तो उन्होंने इसपर अनभिज्ञता भी जताई। जबकि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सभी सिलेंडर 6 माह के अंदर के ही हैं और कमरे में पानी रिसने के कारण उसके बाहरी परत में जंग लग गया है। तीन माह से सभी सिलेंडर कमरे में ही पड़े हुए हैं और जिसको देखने वाला कोई नहीं है। सिर्फ यही नहीं सूत्रों से तो यह भी पता चला है कि कोरोना काल के दौरान ही अस्पताल में जंबो सिलेंडरों की सप्लाई शुरू हुई थी और जो अब तक चल रही है। इसका मतलब अस्पताल में दो सालों से ही सिलेंडर की सप्लाई हो रही हैं। बावजूद इसके इसे वर्षों पुराना बताने की कोशिश हो रही है। जिससे ऐसा लगता है कि अस्पताल अपने नाकामियों को छुपाने की कोशिश कर रही है। और तो और सभी सिलेंडर भरे हुए हैं। ये कंडम नहीं है और कंपनी ऑक्सीजन खत्म होने के बाद इन्हें रिप्लेस कर दूसरा सिलेंडर देती है। ठीक उसी तरह जैसे हम रसोई गैस इंडेन का इस्तेमाल करते हैं और खत्म होने के बाद गैस भरकर हमें खाली के बदले भरा हुआ दिया जाता है। जिसके लिए हमें कंपनी में डिपॉजिट भी जमा करना पड़ता है। मामले में अधीक्षक डॉ रविंद्र कुमार ने कहा कि सभी सिलेंडर वर्षों पुराने हैं और इसे कंडम भी घोषित किया जा चुका है। अब ये किसी काम के नहीं हैं और इन्हें ठेका कंपनी द्वारा ही डिस्पोजल किया जाना है। अब सवाल उठता है कि अगर ये सिलेंडर इतने पुराने हैं तो इसे पहले ही डिस्पोजल क्यों नहीं किया गया? या फिर इसे जान-बूझकर कमरे में रखकर कंडम किया गया? अगर गलती से इन सिलेंडरों का इस्तेमाल कहीं हुआ और अगर कोई हादसा हो गया तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? ऐसे कई सवाल हैं जिसका जवाब जनता जानना चाहती है।

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